अहोई अष्टमी हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है। यह व्रत दिवाली से कुछ दिन पहले रखा जाता है, ताकि संतान की लंबी उम्र और खुशहाली सुनिश्चित हो सके।
इस दिन माताएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं, फिर अहोई माता की पूजा के लिए व्रत का संकल्प लेती हैं। पूरे दिन निर्जल व्रत रखा जाता है — न भोजन, न जल।
पूजा की तैयारी में अहोई माता का चित्र या प्रतिमा स्थापित करना, लाल या पीले कपड़े बिछाना, जल, फूल, दीप, रोली, अक्षत और नैवेद्य अर्पित करना शामिल है।
शाम को तारों को देखने का समय विशेष माना जाता है। पूजा के बाद माता की कथा सुनी जाती है और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत का उद्देश्य है — माता की आस्था और संतान की सुरक्षा, दीर्घायु व सुख-समृद्धि की कामना। यह व्रत प्रेम, विश्वास और त्याग का प्रतीक माना जाता है।