
Somvar Vrat Katha हिंदू धर्म में भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति भाव से रखने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और इच्छित फल की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, जो भक्त सच्चे मन से सोमवार व्रत रखते हैं, उन्हें सुख-समृद्धि, वैवाहिक सुख, स्वास्थ्य लाभ और आर्थिक स्थिरता प्राप्त होती है। इस व्रत की कथा में भगवान शिव और माता पार्वती की महिमा का वर्णन किया गया है, जिसमें भक्तों के प्रति उनकी करुणा और आशीर्वाद की गाथा सुनाई जाती है। इस व्रत को करने से न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक शांति भी मिलती है।
16 Somvar Vrat Katha
एक बार शिवजी और माता पार्वती मृत्यु लोक पर घूम रहे थे। घूमते घूमते वो विदर्भ देश के अमरावती नामक नगर में आए। उस नगर में एक सुंदर शिव मंदिर था इसलिए महादेवजी पार्वतीजी के साथ वहां रहने लग गए। एक दिन बातों बातों में पार्वतीजी ने शिवजी को चौसर खेलने को कहा। शिवजी राजी हो गए और चौसर खेलने लग गए।
उसी समय मंदिर का पुजारी दैनिक आरती के लिए आया पार्वती ने पुजारी से पूछा, बताओ हम दोनों में चौसर में कौन जीतेगा, वो पुजारी भगवान शिव का भक्त था और उसके मुंह से तुरन्त निकल पड़ा ‘महादेव जी जीतेंगे’। चौसर का खेल खत्म होने पर पार्वतीजी जीत गयी और शिवजी हार गये। पार्वती जी ने क्रोधित होकर उस पुजारी को शाप देना चाहा तभी शिवजी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि ये तो भाग्य का खेल है उसकी कोई गलती नहीं है फिर भी माता पार्वती ने उस कोढ़ी होने का शाप दे दिया और उसे कोढ़ हो गया। काफी समय तक वो कोढ़ से पीड़ित रहा।
एक दिन एक अप्सरा उस मंदिर में शिवजी की आराधना के लिए आई और उसने उस पुजारी के कोढ़ को देखा। अप्सरा ने उस पुजारी को कोढ़ का कारण पूछा तो उसने सारी घटना उसे सुना दी। अप्सरा ने उस पुजारी को कहा, तुम्हें इस कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए सोलह सोमवार व्रत करना चाहिए। उस पुजारी ने व्रत करने की विधि पूछी। अप्सरा ने बताया, सोमवार के दिन नहा धोकर साफ़ कपड़े पहन लेना और आधा किलो आटे से पंजीरी बना देना, उस पंजीरी के तीन भाग करना, प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना करना, इस पंजीरी के एक तिहाई हिस्से को आरती में आने वाले लोगों को प्रसाद के रूप में देना, इस तरह सोलह सोमवार तक यही विधि अपनाना। 17वें सोमवार को एक चौथाई गेहूं के आटे से चूरमा बना देना और शिवजी को अर्पित कर लोगों में बांट देना, इससे तुम्हारा कोढ़ दूर हो जाएगा। इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से उसका कोढ़ दूर हो गया और वो खुशी-खुशी रहने लगा।
एक दिन शिवजी और पार्वतीजी दोबारा उस मंदिर में लौटे और उस पुजारी को एकदम स्वस्थ देखा। पार्वती जी ने उस पुजारी से स्वास्थ्य लाभ होने का राज पूछा। उस पुजारी ने कहा उसने 16 सोमवार व्रत किए जिससे उसका कोढ़ दूर हो गया। पार्वती जी इस व्रत के बारे में सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने भी ये व्रत किया और इससे उनका पुत्र वापस घर लौट आया और आज्ञाकारी बन गया। कार्तिकेय ने अपनी माता से उनके मानसिक परिवर्तन का कारण पूछा जिससे वो वापस घर लौट आए पार्वती ने उन्हें इन सब के पीछे सोलह सोमवार व्रत के बारे में बताया कार्तिकेय यह सुनकर बहुत खुश हुए।
कार्तिकेय ने अपने दूर गए ब्राह्मण मित्र से मिलने के लिए उस व्रत को किया और सोलह सोमवार होने पर उनका मित्र उनसे मिलने विदेश से वापस लौट आया। उनके मित्र ने इस राज का कारण पूछा तो कार्तिकेय ने सोलह सोमवार व्रत की महिमा बताई यह सुनकर उस ब्राह्मण मित्र ने भी विवाह के लिए सोलह सोमवार व्रत रखने के लिए विचार किया। एक दिन राजा अपनी पुत्री के विवाह की तैयारियां कर रहा था। कई राजकुमार राजा की पुत्री से विवाह करने के लिए आए। राजा ने एक शर्त रखी कि जिस भी व्यक्ति के गले में हथिनी वरमाला डालेगी उसके साथ ही उसकी पुत्री का विवाह होगा। वो ब्राह्मण भी वही था और भाग्य से उस हथिनी ने उस ब्राह्मण के गले में वरमाला डाल दी और शर्त के अनुसार राजा ने उस ब्राह्मण से अपनी पुत्री का विवाह करा दिया।
एक दिन राजकुमारी ने ब्राह्मण से पूछा आपने ऐसा क्या पुण्य किया जो हथिनी ने दूसरे सभी राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में वरमाला डाली। उसने कहा, प्रिये मैंने अपने मित्र कार्तिकेय के कहने पर सोलह सोमवार व्रत किये थे उसी के परिणामस्वरूप तुम लक्ष्मी जैसी दुल्हन मुझे मिली। राजकुमारी यह सुनकर बहुत प्रभावित हुई और उसने भी पुत्र प्राप्ति के लिए सोलह सोमवार व्रत रखा। फलस्वरूप उसके एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और जब पुत्र बड़ा हुआ तो पुत्र ने पूछा माँ आपने ऐसा क्या किया जो आपको मेरे जैसा पुत्र मिला, उसने भी पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की महिमा बतायी।
यह सुनकर उसने भी राजपाट की इच्छा के लिए ये व्रत रखा। उसी समय एक राजा अपनी पुत्री के विवाह के लिए वर तलाश कर रहा था तो लोगों ने उस बालक को विवाह के लिए उचित बताया। राजा को इसकी सूचना मिलते ही उसने अपनी पुत्री का विवाह उस बालक के साथ कर दिया। कुछ सालों बाद जब राजा की मृत्यु हुयी तो वो राजा बन गया क्योंकि उस राजा के कोई पुत्र नही था। राजपाट मिलने के बाद भी वो सोमवार व्रत करता रहा। एक दिन 17 वें सोमवार व्रत पर उसकी पत्नी को भी पूजा के लिए शिव मंदिर आने को कहा लेकिन उसने खुद आने के बजाय दासी को भेज दिया। ब्राह्मण पुत्र के पूजा खत्म होने के बाद आकाशवाणी हुई तुम अपनी पत्नी को अपने महल से दूर रखो, वरना तुम्हारा विनाश हो जाएगा। ब्राह्मण पुत्र ये सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ।
महल वापस लौटने पर उसने अपने दरबारियों को भी ये बात बताई तो दरबारियों ने कहा कि जिसकी वजह से ही उसे राजपाट मिला है वो उसी को महल से बाहर निकालेगा। लेकिन उस ब्राह्मण पुत्र ने उसे महल से बाहर निकल दिया। वो राजकुमारी भूखी प्यासी एक अनजान नगर में आयी। वहां पर एक बुढ़ी औरत धागा बेचने बाजार जा रही थी। जैसे ही उसने राजकुमारी को देखा तो उसने उसकी मदद करते हुए उसके साथ व्यापार में मदद करने को कहा। राजकुमारी ने भी एक टोकरी अपने सर पर रख ली। कुछ दूरी पर चलने के बाद एक तूफान आया और वो टोकरी उड़कर चली गई अब वो बूढ़ी औरत रोने लग गई और उसने राजकुमारी को मनहूस मानते हुए चले जाने को कहा।
उसके बाद वो एक तेली के घर पहुंची उसके वहा पहुंचते ही सारे तेल के घड़े फूट गए और तेल बहने लग गया। उस तेली ने भी उसे मनहूस मानकर उसको वहा से भगा दिया। उसके बाद वो एक सुंदर तालाब के पास पहुंची और जैसे ही पानी पीने लगी उस पानी में कीड़े चलने लगे और सारा पानी धुंधला हो गया। अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए उसने गंदा पानी पी लिया और पेड़ के नीचे सो गई जैसे ही वो पेड़ के नीचे सोयी उस पेड़ की सारी पत्तियां झड़ गईं। अब वो जिस पेड़ के पास जाती उसकी पत्तियां गिर जाती थीं।
ऐसा देखकर वहां के लोग मंदिर के पुजारी के पास गए। उस पुजारी ने उस राजकुमारी का दर्द समझते हुए उससे कहा – बेटी तुम मेरे परिवार के साथ रहो, मैं तुम्हे अपनी बेटी की तरह रखूंगा, तुम्हे मेरे आश्रम में कोई तकलीफ नहीं होगी। इस तरह वह आश्रम में रहने लग गई अब वो जो भी खाना बनाती या पानी लाती उसमे कीड़े पड़ जाते। ऐसा देखकर वो पुजारी आश्चर्यचकित होकर उससे बोला बेटी तुम पर ये कैसा कोप है जो तुम्हारी ऐसी हालत है। उसने वही शिवपूजा में ना जाने वाली कहानी सुनाई। उस पुजारी ने शिवजी की आराधना की और उसको सोलह सोमवार व्रत करने को कहा जिससे उसे जरूर राहत मिलेगी।
उसने सोलह सोमवार व्रत किया और 17 वें सोमवार पर ब्राह्मण पुत्र उसके बारे में सोचने लगा, वह कहाँ होगी, मुझे उसकी तलाश करनी चाहिये। इसलिए उसने अपने आदमी भेजकर अपनी पत्नी को ढूंढ़ने को कहा उसके आदमी ढूंढ़ते ढूंढ़ते उस पुजारी के घर पहुंच गए और उन्हें वहा राजकुमारी का पता चल गया। उन्होंने पुजारी से राजकुमारी को घर ले जाने को कहा लेकिन पुजारी ने मना करते हुए कहा अपने राजा को कहो कि खुद आकर इसे ले जाएं।
राजा खुद वहां पर आया और राजकुमारी को वापस अपने महल लेकर आया। इस तरह जो भी यह सोलह सोमवार व्रत करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
Somvar Vrat Katha In Hindi
Benefits Of 16 Somvar Vrat
सोलह सोमवार व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है और इसे करने से अनेक लाभ होते हैं। यह व्रत विशेष रूप से विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करता है और शीघ्र विवाह के योग बनाता है। साथ ही, यह दांपत्य जीवन को सुखी और समृद्ध बनाता है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलती है, मानसिक शांति प्राप्त होती है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। जो लोग करियर और व्यापार में सफलता चाहते हैं, उन्हें भी इस व्रत का पालन करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। शिव कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
Also Read: 16 Somvar Vrat Ki Vidhi : सोमवार व्रत विधि के बारे में सभी जानकारी जानें
Link : Om Jai Shiv Omkara Aarti – ૐ जय शिव ૐ कर आरती
Also Read:
- Hartalika Teej Aarti 2025: हरतालिका तीज आरती | सरल भाषा में संपूर्ण पाठ
- Hartalika Teej Vrat Kab Hai 2025? जानिए तिथि, मुहूर्त और व्रत से जुड़ी सभी जानकारी
- Hartalika Teej Vrat Katha 2025: जानिए व्रत की पूरी कथा, पूजन विधि और इसका धार्मिक महत्व
- Ekadashi Aarti : भगवान विष्णु की भक्तिमय स्तुति
- Ekadashi Vrat Vidhi : संपूर्ण पूजन और उपवास की सही प्रक्रिया