
Shani Dev Chalisa एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए श्रद्धालु पाठ करते हैं। यह चालीसा 40 चौपाइयों में शनि देव के गुणों, शक्तियों और उनकी कृपा का वर्णन करती है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है, जो प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। शनि चालीसा का नियमित पाठ करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और अन्य नकारात्मक प्रभावों से बचाव होता है तथा जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। विशेष रूप से शनिवार के दिन इसका पाठ करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
श्री शनि चालीसा (2) श्री शनि चालीसा (२)
॥ दोहा।।
श्री शनिश्चर देव जी, सुनहु श्रवण मम टेर।
कोटि विघ्ननाशक प्रभो, करो न मम हित बेर ।।
सोरठा-तवस्तुति हे नाथ ! जोरि जुगल कर करत हैं।
करिए मोहिं सनाथ, विघ्नहरन हे रविसुवन ॥
।। चौपाई ।।
शनिदेव मैं सुमिरौं तोही। विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही ॥
तुम्हरो नाम अनेक बखानौं। क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं ।
अन्तक, कोण, रौद्रय मंगाऊँ। कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ ।।
पिंगल मन्द सौरि सुख दाता। हित अनहित सब जगके ज्ञाता ।।
नित्य जपै जो नाम तुम्हारा। करहु व्याधि दुःख से निस्तारा ।।
राशि विषमवस असुरन सुरनर । पन्नग शेष सहित विद्याधर ॥
राजा रंक रहंहिं जो नीको। पशु पक्षी वनचर सबही करो ।
कानन किला शिविर सेनाकर । नाश करत सब ग्राम्य नगर भर ॥
डालत विघ्न सबहि के सुख में। याकुल होहिं पड़ें सब दुःख में ॥
नाथ विनय तुमसे यह मेरी। करिये न मोहि पर दया घनेरी ॥
ममहित विषम राशि मँह बासा। करिय न नाथ यही मम आशा ॥
जो गुड़ उड़द दे वार शनिचर । तिल जव लोह अन्नधन बस्तर ॥
दान दिये से होय सुखारी। सोई शनि सुन यह विनय हमारी ।।
नाथ दया तुम मो पर कीजै। कोटिक विघ्न क्षणिक महं छीजै ।।
वंदत नाथ जुगल कर जोरी । सुनहु दया कर विनती मोरी ॥
कबहुंक तीर्थ राज प्रयागा। सरयू तोर सहित अनुरागा ॥
कबहुं सरस्वति शुद्ध नार महँ। या कहूं गिरी खोह कंदर महँ ।
ध्यान धरत हैं जो जोगी जन। ताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहिं शनि ॥
है अगम्य क्या करूँ बड़ाई। करत प्रणाम चरण शिर नाई ।।
जो विदेश से बार शनिचर। मुड़कर आवेगा निज घर पर ।।
रहें सुखी शनिदेव दुहाई। रक्षा रवि सुत रखैं बनाई ।।
जो विदेश जावें शनिवारा। गृह आवै नहिं सहै दुखारा ॥
संकट देय शनिचर ताही। जेते दुखी होई मन माही॥
सोई रवि नन्दन कर जोरी। वन्दन करत मूढ़ मति थोरी ॥।
हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी। विभू देव मूरति एक वारी ॥
इक होई धारण करत शनि नित । वंदत सोई शनि को दमन चित ॥
जो नर पाठ करै मम चित्त से। सो नर छूटै व्यथा अमित से ।।
हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े। कलि काल कर जोड़े ठाढ़े।
पशु कुटुम्ब बांधव आदि से। भरो भवन रहिहैं नित सब से ।।
नाना भांति भोग सुख सारा। अन्त समय तजकर संसारा ।।
पावै मुक्ति अमरपद भाई। जो नित शनि सम ध्यान लगाई ।
पढ़े प्रात जो नाम शनि दस। रहें शनिश्चर नित उसके वश ।।
पीड़ा शनि की कबहुं न हाई। नित उठ ध्यान धरैं जो कोई ॥।
जो यह पाठ करें चालीसा। होय सुखी साखी जगदीशा ।
चालिस दिन नित पढ़ै सवेरे। पातक नाशैं शनि घनेरे ॥
रवि नन्दन की अस प्रभुताई। जगत मोहतम नाशै भाई ॥
याकौ पाठ करै जो कोई। सुख सम्पति की कमी न होई ।।
निशिदिन ध्यान धरै मनमाहीं। आधि-व्याधि ढिंग आवै नाहीं ॥
॥ दोहा।।
पाठ शनिश्चर देव को, कीहौं भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।।
जो स्तुति दशरथ जी कियो, सम्मुख शनि निहार।
सरस सुभाष में वही, ललिता लिखें सुधार।।
Shri Shani Chalisa | Meaning & Significance
शनि चालीसा भगवान शनि देव की आराधना के लिए एक प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसमें उनकी महिमा, शक्ति और न्यायप्रियता का उल्लेख किया गया है। इस चालीसा के पाठ से जीवन की कठिनाइयाँ कम होती हैं और शनि ग्रह से जुड़े दोषों का निवारण होता है। कहा जाता है कि शनि देव कर्मों के अनुसार फल देते हैं, इसलिए उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और नियमित चालीसा पाठ से व्यक्ति को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। विशेष रूप से शनिवार के दिन इसका पाठ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सौभाग्य का संचार होता है।
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