
Shani Chalisa एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए श्रद्धालु पाठ करते हैं। यह चालीसा 40 चौपाइयों में शनि देव के गुणों, शक्तियों और उनकी कृपा का वर्णन करती है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है, जो प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। शनि चालीसा का नियमित पाठ करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और अन्य नकारात्मक प्रभावों से बचाव होता है तथा जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। विशेष रूप से शनिवार के दिन इसका पाठ करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
श्री शनि चालीसा (1) | श्री शनि चालीसा (१)
विपदा, संकट, कष्ट और दारुण दुःख भरपूर।
साढ़े साती का समय, बड़ा विकट और क्रूर ।।
ईश भजन और सदुपाय, हरैं क्लेश क्रूर।
शनि कृपा, सद्भाव से, रहें दुःख सब दूर ।।
॥ दोहा ।।
सुख मुनि गुरु चरण-रज, सुखद अलौकिक धूल ।
मन के पाप विकार को, नासै तुरत समूल ॥
दुःख दाता शनिदेव की, कहूं चालीसा सिद्ध।
शनि कृपा से दूर हों, ताप कष्ट अरु शूल ॥
दुःख घने मैं बुद्धि मन्द, शनि सुख-दुख के हेतु।
सर्व सिद्धि, सफलता दो, हरो कष्ट भव-सेतु।।
जग दारुण दुःख बेलड़ी, मैं एक हाय ! असहाय।
विपद-सेना विपुल बड़ी, तुम बिना कौन सहाय ।।
।। चौपाई ।।
शनिदेव कृपालु रवि-नंदन । सुमिरण तुम्हारा सुख-चन्दन॥
नाश करो मेरे विघ्नों का। कृपा सहारा दुःखी जनों का।।
जप नाम सुमिरण नहीं कीन्हा। तभी हुआ बल बुद्धि हीना।।
विपद क्लेश कष्ट के लेखे। रवि सुत सब तव रिस के देखे।।
क्रूर तनिक बभ्रु की दृष्टि। तुरत करै दारुण जप दुःख-वृष्टि ॥
कृष्ण नाम जप ‘राम कृष्णा’ । कोणस्थ मन्द हरैं सब तृष्णा ।।
पिंगल, सौरि, शनैश्चर, मन्द । रौद्र, यम कृपा जगतानन्द ।।
कष्ट क्लेश, विकार घनेरे। विघ्न, पाप हरो शनि मेरे ॥
विपुल समुद्र दुःख-शत्रु-सेना । कृष्ण सारथि नैया खेना ।।
सुरासुर नर किन्नर विद्याधर । पशु, कीट अरु नभचर जलचर ।।
राजा रंक व सेठ, भिखारी। देव्याकुलता गति बिगाड़ी ।।
दुःख दुर्भिक्ष, दुस्सह संतापा। अपयश कहीं, घोर उत्पाता ।।
कहीं पाप, दुष्टता व्यापी। तुम्हरे बल दुःख पावै पापी ।।
सुख सम्पदा साधन नाना। तव कृपा बिन राख समाना ॥
मन्द ग्रह दुर्घटना कारक। साढ़े साती से सुख-संहारक ॥
कृपा कीजिए दुःख के दाता। जोरि युगल कर नावऊ माथा ।
हरीशचन्द्र से ज्ञानी राजा। छीन लिए तुम राज-समाजा ॥
डोम चाकरी, टहल कराई । दारुण विपदा पर विपद चढ़ाई ।।
गुरु सम सबकी करो ताड़ना। बहुत दीन हूँ, नाथ उबारना ॥
तिहुं लोक के तुम दुःख दाता। कृपा कोर से जन सुख पाता ॥
जौ, तिल, लोहा, तेल, अन्न धन । तुम उरद, गुड़ प्रिय मन भावन ॥
यथा सामर्थ्य जो दान करे। शनि सुख के सब भण्डार भरे ।।
जे जन करैं दुःखी की सेवा। शनि-दया की चखैं नित मेवा॥
बुरे स्वप्न से शनि बचावें। अपशकुन को दूर भगावें ॥
दुर्गति मिटे दया से उनकी। हरैं दुष्ट-क्रूरता मन की।
दुष्ट ग्रहों की पीड़ा भागे। रोग निवारक शक्ति जागे ।।
सुखदा, वरदा, अभयदा, मन्द । पीर, पाप ध्वंसक, रविनन्द ॥
दुःख, दावाग्नि विदारक मंद । धारण किए धनुष, खंग, फंद ।।
विकटट् अटहास से कंपित जग। गीध संवार शनि, सदैव सजग ।।
जय-जय-जय करो शनि देव की। विपद विनाशक देव देव की ।
प्रज्वलित होइए, रक्ष रक्ष। अपमृत्यु नाश में पूर्ण दक्ष ॥
काटो रोग भय कृपालु शनि । दुःख शमन करो, अब प्राण बनी ।।
मृत्यु भय को भगा दीजिए। मेरे पुण्यों को जगा दीजिए।।
रोग शोक को जड़ से काटो। शत्रु को सबल शक्ति से टांडो ॥
काम, क्रोध, लोभ, भयंकरारि । करो उच्चाटन भक्त-पुरारि ॥
भय के सारे भूत भगा दो। सुकर्म पुण्य की शक्ति जगा दो॥
जीवन दो, सुख दो, शक्ति दो। शुभ कर्म कृपा कर भक्ति दो ॥
बाधा दूर भगा दो सारी। खिले मनोकामना फुलवारी ॥
शुद्ध मन दुःखी जन पढ़े चालीसा। शनि सहाय हों सहित जगदीसा ॥
बढ़ै दाम दस पानी बरखा। परखो शनि शनि तुम परखा ।।
॥ दोहा।।
चालीस दिन के पाठ से, मन्द देव अनुकूल।
राम कृष्ण कष्ट घटैं सूक्ष्म अरु स्थूल ॥
दशरथ शूरता स्मरण, मंगलकारी भाव।
शनि मंत्र उच्चारित दुःख विकार निर्मूल ॥
Shani Chalisa Lyrics | अर्थ एवं महत्त्व
शनि चालीसा भगवान शनि देव की स्तुति में रचित एक भक्तिपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें उनके गुण, शक्तियाँ और कृपा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसका पाठ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं। खासतौर पर साढ़ेसाती और ढैय्या के दौरान शनि चालीसा का नियमित पाठ करने से नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और व्यक्ति को धैर्य, आत्मबल और सफलता प्राप्त होती है। यह चालीसा हमें शनि देव के न्यायप्रिय स्वभाव को समझने और अपने कर्मों के प्रति सचेत रहने की प्रेरणा भी देती है।
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