Santoshi Mata Ki Katha : संतोष से सिद्धि तक का मार्ग

Santoshi Mata Ki Katha संतोष से सिद्धि तक का मार्ग

Santoshi Mata Ki Katha एक ऐसी प्रेरणादायक कथा है जो श्रद्धा, भक्ति और संतोष के माध्यम से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है। यह कथा न केवल देवी संतोषी माता की महिमा का वर्णन करती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि कैसे एक साधारण भक्त अपने अटूट विश्वास और संयम से हर कठिनाई को पार कर सकता है। शुक्रवार का व्रत रखने वाली महिलाएं इस कथा को विशेष रूप से पढ़ती और सुनती हैं, ताकि उनके जीवन में संतोष, प्रेम और पारिवारिक सुख बना रहे। यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है जो जीवन में आस्था के साथ आगे बढ़ना चाहता है।

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Santoshi Mata Ki Katha | In Hindi

एक समय की बात है, एक बुढ़िया के सात बेटे थे। उनमें से छह कमाते थे और एक बेरोज़गार था। बुढ़िया अपने छह कमाऊ बेटों को स्वादिष्ट खाना बनाकर प्रेम से खिलाती, पर सबसे छोटे बेटे को सभी की झूठन परोस देती। वह भोला-भाला लड़का यही समझता रहा कि मां उससे बहुत प्रेम करती है।

एक दिन उसकी पत्नी ने सच्चाई बताई कि मां उसे झूठन देती है। विश्वास न होने पर उसने एक दिन छुपकर देखा कि मां छह बेटों को प्रेम से भोजन करा रही है और उनके बचे झूठे खाने को एक थाली में इकट्ठा कर उसके लिए रख रही है। यह देख उसका मन टूट गया। घर आने पर मां बोली, “खाना खा ले बेटा,” तो वह बोला, “अब नहीं खाऊंगा, मैं प्रदेश जा रहा हूं।” मां बोली, “कल क्यों? आज ही चला जा।” वह घर से निकल गया और गौशाला में पहुंचा, जहां उसकी पत्नी गोबर के उपले थाप रही थी। पत्नी ने विदा करते हुए कहा, “आप चिंता मत करें, मैं संतोष से रहूंगी।” उसने पति को निशानी देने को कहा। पति ने अपनी अंगूठी दी और पत्नी ने गोबर से भरे हाथ से उसकी पीठ पर थाप मार दी।

वह चलते-चलते एक नगर पहुंचा और एक व्यापारी की दुकान पर नौकरी मांगने लगा। व्यापारी ने कहा, “काम देखकर वेतन मिलेगा।” वह सुबह से रात तक ईमानदारी से काम करने लगा। कुछ ही समय में व्यापारी ने उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया और 12 वर्षों में वह एक नामी सेठ बन गया।

उधर, उसकी पत्नी को सास-ननदें बहुत कष्ट देती थीं। लकड़ी लाने जंगल भेजतीं, भूसी की रोटी और फूटे नारियल में पानी देतीं। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, तभी उसने एक मंदिर में महिलाओं को व्रत करते और कथा सुनते देखा। उसने पूछा, “यह किसका व्रत है?” महिलाओं ने बताया, “यह संतोषी माता का व्रत है, इससे संतान सुख, धन, शांति और खोया पति भी मिलता है।” उन्होंने उसे व्रत की विधि बताई।

उसने लकड़ियाँ बेचकर गुड़ और चना खरीदा और व्रत करना शुरू किया। हर शुक्रवार मंदिर जाकर माता से विनती करती, “मां, मैं दुखी हूं, मुझे अपना सुहाग लौटा दो।” माता प्रसन्न हुईं और एक शुक्रवार उसके पति का पत्र आया। अगले शुक्रवार उसके पति का भेजा धन भी मिला। वह माता से बोली, “मां, मैंने तो पैसे नहीं मांगे थे, मुझे तो अपना सुहाग चाहिए।” माता ने कहा, “जा बेटी, तेरा पति जल्द ही आएगा।”

माता ने उसके पति को स्वप्न में दर्शन देकर घर लौटने को कहा। सुबह उसने माता का नाम लेकर दीप जलाया और बैठा ही था कि सारा बकाया हिसाब साफ हो गया और धन वर्षा होने लगी। वह घर लौट चला।

इधर पत्नी रोज व्रत करती रही। एक दिन धूल उड़ती देख वह बोली, “मां, यह धूल कैसी?” मां बोली, “तेरा पति आ रहा है।” वह लकड़ियों के तीन गट्ठर बनाकर रास्ते में रख देती है। पति उन्हें देखता है और मोहवश घर चला आता है। घर आकर पत्नी ने सास से कहा, “लकड़ी ले लो, भूसी की रोटी दो और फूटे नारियल में पानी दो, मेहमान आया है।” सास चौंकी, बाहर आई और बोली, “बेटी, तेरा पति आया है!” पति ने पत्नी को पहचाना और सास से बोला, “अब मुझे दूसरा घर दे दो, मैं उसमें रहूंगा।”

अगले शुक्रवार पत्नी ने संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करने की ठानी। उसने बच्चों को बुलाया, लेकिन जिठानियों ने उन्हें खटाई मांगने को उकसा दिया। जब उन्होंने खटाई मांगी, तो उसने पैसे दे दिए। वे खटाई खरीद लाए। माता नाराज़ हो गईं और राजा के सिपाही उसके पति को पकड़ ले गए।

पत्नी मंदिर गई और बोली, “मां, मैंने तो गलती से पैसे दिए, मुझे क्षमा करें।” माता बोलीं, “जा, तेरा पति रास्ते में मिल जाएगा।” और ऐसा ही हुआ। अगले शुक्रवार उसने फिर उद्यापन किया, इस बार ब्राह्मण बालकों को बुलाकर भोजन कराया और दक्षिणा दी। माता प्रसन्न हुईं और नौ महीने बाद उसे चंद्रमा जैसा पुत्र प्राप्त हुआ।

वह रोज़ मंदिर जाने लगी। एक दिन माता ने सोचा, चलो बहू के घर चलूं। उन्होंने अजीब रूप धारण किया—गुड़ और चने से सना चेहरा, ऊपर सूंड जैसे होंठ, जिन पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं। सास ने उन्हें देख डाकिन समझकर भगाना चाहा, लेकिन बहू पहचान गई और बोली, “यह मेरी माता हैं!” सभी ने माता से क्षमा मांगी। माता ने सबको आशीर्वाद दिया।

जो भी श्रद्धा से यह कथा कहता-सुनता है, उसे संतोष, सुख, संतान, धन, वैभव और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

बोलिए संतोषी माता की जय!

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Santoshi Mata Ki Katha Full Video | In Hindi

Santoshi Mata Ki Katha के लाभ

Santoshi Mata Ki Katha के अनेक लाभ चमत्कारी होते हैं। इस कथा को श्रद्धा और भक्ति के साथ सुनने व करने से जीवन में संतोष, सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। घर में कलह और दरिद्रता दूर होती है, संतान सुख प्राप्त होता है, और मनचाहा वर या वधू भी मिलता है। जो स्त्री या पुरुष नियमित रूप से शुक्रवार का व्रत कर संतोषी माता की कथा सुनते हैं, उनके जीवन की सभी बाधाएं दूर होकर सौभाग्य बढ़ता है। यह कथा न केवल आर्थिक संकट दूर करती है, बल्कि टूटे रिश्तों को जोड़ने की शक्ति भी रखती है।

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