Nag Panchami 2025 : नाग देवता की कृपा पाने का सबसे शुभ दिन, जानिए सबकुछ यहाँ

Nag Panchami 2025

श्रावण मास शुद्धता, भक्ति और देवी-देवताओं की आराधना का पवित्र समय होता है, और इसी मास में आने वाली नाग पंचमी का विशेष महत्व है। यह पर्व उन नाग देवताओं की पूजा का प्रतीक है जो सृष्टि की रक्षा, ऊर्जा संतुलन और शिव शक्ति से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2025 में नाग पंचमी एक अत्यंत शुभ योग में मनाई जाएगी, जब श्रद्धालु व्रत, पूजा और कथा पाठ के माध्यम से नाग देवता की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख में आप जानेंगे नाग पंचमी की तिथि, पूजन मुहूर्त, व्रत विधि, धार्मिक महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा – सबकुछ एक ही स्थान पर।

Also Read: Nag Panchami Kab Hai? नाग पंचमी जुड़ी सभी जानकारी जानें | मुहूर्त, विधि और तारीख

Nag Panchami 2025 | Katha

प्राचीन काल में एक सेठजी थे जिनके सात पुत्र थे और सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था। एक दिन उस घर की बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी एक साथ डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने के लिए निकल पड़ीं। जब बहुएं मिट्टी खोद रही थीं तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी।

यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोका और कहा इसे मत मारो? यह बेचारा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब वो सांप एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा मैं अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। इतना कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था वो उसे भूल गई।

उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो वो सब को साथ लेकर वहां पहुंची। सर्प अभी भी उस स्थान पर बैठा था जिसे देखकर छोटी बहूं बोली: सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा: तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण में तुझे अब तक डस लेता। वह बोली: भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूं।

तब सर्प बोला: अच्छा, तू आज से मेरी बहिन है और मैं तेरा भाई तुझे मुझसे जो मांगना हो, मांग ले। वह बोली: मेरा कोई भैया! नहीं है, अच्छा हुआ तुम मेरे भाई बन गए। कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सांप मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहिन को भेज दो। सबने कहा इसका तो कोई भाई नहीं है फिर तुम कौन हो।

तो वह बोला: मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर परिवार के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना मत और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। छोटी बहू ने वैसा ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। सर्प के घर के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।

इस तरह से वो उसके घर में रहने लगी। एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा: मैं एक काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे इस बात का ध्यान नहीं रहा और उसने सांप को गर्म दूध पिला दिया, जिससे उसका मुख जल गया। यह देखकर सर्प की माता को गुस्सा आ गया।परंतु सर्प के समझाने पर वह चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेजना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर घर पहुंचा दिया।

इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू उसने जलने लगी और कहने लगी कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने जब ये वचन सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा इन वस्तुओं को झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर दे दी।

सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया। जिसकी प्रशंसा उस राज्य की रानी ने भी सुनी और वो राजा से बोली कि: सेठ की छोटी बहू का हार मुझे चाहिए। राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार तुरंत ही ले आओ। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह हमें दे दो। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार लेकर उन्हें दे दिया।

छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सांप भाई को याद किया और उससे प्रार्थना की: भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जैसे ही रानी वो हार पहनें वह सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब वो हार हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प में बदल गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और डर गई।

यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी स्वयं छोटी बहू को लेकर राजा के दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा: तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली: राजन! धृष्टता क्षमा कीजिए ये हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और अगर इसे कोई और पहनता है तो ये उसके गले में सर्प बन जाता है।

यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा: अभी पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया। यह देखकर राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार दिया। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा कि ठीक-ठीक बता ये धन कहां से आया है। तब वह स्त्री फिर से अपने सर्प भाई को याद करने लगी।

तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा: यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर किसी ने संदेह प्रकट किया तो मैं उसे खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का सत्कार किया। कहते हैं उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियां सांप को भाई मानकर उसकी पूजा करनी लगीं।

Nag Panchami 2025 | Full Katha Video | In Hindi

नाग पंचमी का सार: जीवन में इसका महत्व

नाग पंचमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मानव और प्रकृति के मध्य संतुलन, श्रद्धा और संरक्षण की भावना का प्रतीक है। नाग देवता की पूजा हमें यह स्मरण कराती है कि सृष्टि के प्रत्येक प्राणी का अपना आध्यात्मिक और पारिस्थितिक महत्व है।

इस दिन व्रत, पूजा और कथा श्रवण से न केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है, बल्कि जीवन में भय, रोग, और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। श्रद्धा से मनाया गया यह पर्व जीवन में शांति, संतुलन और समृद्धि की अनुभूति कराता है।

Also Read

Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025 Nag Panchami 2025

Leave a Comment