Brihaspativar Vrat Katha : गुरु बृहस्पति की कृपा पाने का उपाय

Brihaspativar Vrat Katha एक पौराणिक एवं धार्मिक कथा है जो विशेष रूप से भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति को समर्पित है। इस व्रत की कथा का पाठ व्रतधारियों द्वारा बृहस्पतिवार (गुरुवार) के दिन किया जाता है। यह कथा व्रत के महत्व, विधि और उससे मिलने वाले फलों को समझाने का माध्यम है। ऐसा माना जाता है कि इस कथा को श्रद्धा और भक्ति से सुनने या पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

यह व्रत विशेष रूप से वैवाहिक जीवन की समस्याओं, आर्थिक कष्टों और ग्रह दोषों को दूर करने के लिए फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रती पीले वस्त्र पहनते हैं, पीले भोजन का सेवन करते हैं और पीले रंग की वस्तुएं दान करते हैं। कथा के माध्यम से यह संदेश भी मिलता है कि सच्ची श्रद्धा, संयम और सेवा से ईश्वर की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।

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Brihaspativar Vrat Katha

भारत में एक दानी राजा रहता था, जो प्रतिदिन गरीबों की मदद करता था, पर उसकी रानी दान-पुण्य में विश्वास नहीं करती थी। एक दिन राजा शिकार पर गया और बृहस्पतिदेव साधु रूप में महल में भिक्षा माँगने आए। रानी ने उन्हें दान देने से इनकार करते हुए कहा कि वह दान-पुण्य से तंग आ गई है। साधु ने उसे शाप जैसा उपाय बताया कि पीली मिट्टी से सिर धोकर, घर लीपकर और भट्टी जलाकर कपड़े धोए तो उसका सारा धन नष्ट हो जाएगा। रानी ने वैसा ही किया और कुछ ही समय में सारा धन चला गया।

राजा परदेश चला गया और लकड़ी काटकर गुजारा करने लगा। उधर रानी भूखों रहने लगी। एक दिन दासी को अपनी बहन के पास भेजा, जो बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी। दासी को जवाब नहीं मिला, जिससे रानी नाराज हुई। बाद में बहन ने बताया कि कथा के दौरान बोलना मना होता है और रानी की मदद की। जब घर में अनाज भरा घड़ा मिला तो रानी को विश्वास हुआ। रानी ने बहन से व्रत की विधि सीखी और व्रत करना शुरू किया।

एक दिन भगवान बृहस्पति स्वयं भोजन बनाकर लाए, जिससे उनका विश्वास और बढ़ा। व्रत से उनका जीवन सुधरने लगा, लेकिन रानी फिर से आलसी हो गई। दासी ने उसे समझाया, तो रानी ने फिर से अच्छे कर्म करने शुरू किए।

उधर राजा भी जंगल में साधु बने बृहस्पतिदेव से मिले, जिन्होंने उसे व्रत करने को कहा। व्रत के बाद उसके जीवन में सुधार हुआ, लेकिन अगली बार भूल जाने से वह कारागार में डलवा दिया गया। बृहस्पतिदेव ने राजा को सपने में बताया कि वह निर्दोष है। राजा को रिहा कर सम्मान सहित विदा किया गया।

वापस अपने नगर आकर उसे रानी द्वारा किए अच्छे कार्यों का पता चला। रानी ने बताया कि यह सब बृहस्पतिवार व्रत का फल है। राजा ने निश्चय किया कि वह प्रतिदिन तीन बार कथा कहेगा। एक दिन वह कथा सुनाने निकला—मृत व्यक्ति जीवित हो गया, किसान के बैल उठ खड़े हुए और खेत में दर्द से तड़पता किसान भी ठीक हो गया।

राजा अपनी बहन के घर गया। वहाँ एक कुम्हार का बीमार बच्चा था, जिसे कथा सुनाने पर ठीक कर दिया। बहन को साथ लाने लगा तो उसकी सास ने बच्चों को न भेजने को कहा क्योंकि राजा निःसंतान था।

राजा निराश लौटा। रानी ने कहा कि बृहस्पतिदेव औलाद भी देंगे। स्वप्न में देवता ने कहा कि रानी गर्भवती है। नौ महीने बाद पुत्र हुआ। बहन बधाई देने आई, तो रानी ताना मार बैठी। बहन ने कहा कि यदि वह ऐसा न कहती तो संतान कैसे होती।

निष्कर्ष: जो भी श्रद्धा से बृहस्पतिवार व्रत करता है, कथा सुनता-सुनाता है, भगवान बृहस्पति उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

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brihaspativar ki vrat katha | Full Video In Hindi

Benefits of brihaspativar vrat katha

बृहस्पतिवार व्रत कथा के पाठ और व्रत के पालन से अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं। यह व्रत विशेष रूप से गुरु ग्रह की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जिससे जीवन में ज्ञान, धर्म, सम्मान और समृद्धि बढ़ती है। इस व्रत को श्रद्धा से करने पर विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं, संतान सुख मिलता है और परिवार में सौहार्द बना रहता है। आर्थिक परेशानियाँ दूर होती हैं और व्यापार या नौकरी में उन्नति के मार्ग खुलते हैं। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। साथ ही, बृहस्पति देव की कृपा से जीवन में आने वाले संकटों से रक्षा होती है।

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