
Hartalika Teej Vrat Katha एक पवित्र धार्मिक कथा है जो भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन की स्मृति में सुनाई जाती है। इस व्रत का उद्देश्य सुहाग की रक्षा, वैवाहिक जीवन में सुख-शांति तथा अविवाहित कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति के लिए होता है। माता पार्वती ने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्राप्त किया था, और इसी तप का वर्णन इस कथा में किया गया है। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा भाद्रपद शुक्ल तृतीया को निर्जल रहकर श्रद्धा व आस्था के साथ किया जाता है, जिससे देवी पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त हो और सौभाग्य बना रहे।
Also Read: Hartalika Teej Vrat Kab Hai? जानिए तिथि, मुहूर्त और व्रत से जुड़ी सभी जानकारी
Hartalika Teej Vrat Katha
जिनके केशों पर मंदार (आक) के पुष्पों की माला शोभा देती है और जिन भगवान शंकर के मस्तक पर चंद्र और गले में मुण्डों की माला पड़ी हुई है, जो माता पार्वती दिव्य वस्त्रों से तथा भगवान शंकर दिगंबर वेष धारण किए हैं, उन दोनों भवानी-शंकर को नमस्कार करता हूं।
एक बार कैलाश पर्वत के शिखर पर माता पार्वती जी ने महादेव जी से पूछा-हे प्रभु! मुझ से आप वह गुप्त से गुप्त वार्ता कहिए जो सबके लिए सब धर्मों से भी सरल तथा महान फल देने वाली हो। हे नाथ! यदि आप प्रसन्न हैं तो आप उसे मेरे सम्मुख प्रकट कीजिये। हे जगत नाथ! आप आदि, मध्य और अंत रहित हैं, आपकी माया का कोई पार नहीं है। आपको मैंने किस भांति प्राप्त किया है? कौन से व्रत, तप या दान के पुण्य फल से आप मुझको वर रूप में मिले? कृपया करके बताएं।
महादेव बोले-हे देवी ! सुनिए, मैं आपके सम्मुख उस व्रत को कहता हूं, जो परम गुप्त है, जैसे तारागणों में चंद्रमा और ग्रहों से सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में साम और इन्द्रियों में मन श्रेष्ठ है। वैसे ही पुराण और वेद सबमें इसका वर्णन किया गया है। जिसके प्रभाव से तुमको मेरा आधा आसन प्राप्त हुआ है।
हे प्रिये ! उसी का मैं तुमसे वर्णन करता हूं, सुनो-भाद्रपद (भादों) मास के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र संयुक्त तृतीया (तीज) के दिन इस व्रत का अनुष्ठान मात्र करने से सब पापों का नाश हो जाता है। तुमने पहले हिमालय पर्वत पर इस महान व्रत को किया था, जो मैं तुम्हें सुनाता दूं। पार्वती जी बोली-हे प्रभु इस व्रत को मैंने किसलिए किया था, यह मुझे सुनने की इच्छा हो रही है। तो कृपा करके मुझसे कहिए।
शंकर जी बोले-आर्यावर्त में हिमालय नामक एक महान पर्वत है, जहां अनेक प्रकार की भूमि अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित है, जो सदैव बर्फ से ढके हुए तथा गंगा की कल-कल ध्वनि से शब्दायमान ओम रहता है। हे पार्वती जी ! तुमने बाल्यकाल में उसी स्थान पर परम तप किया था और बारह वर्ष तक के महीने में जल में रहकर तथा वैशाख मास में अग्नि में प्रवेश करके तप किया। श्रावण के महीने में बाहर खुले मास की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया के दिन तुमने मेरा विधि विधान से पूजन किया तथा रात्रि को गीत गाते हुए जागरण किया।
तुम्हारे उस महाव्रत के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मैं उसी स्थान पर आ पहुंचा जहां तुम और तुम्हारी सखी दोनों थीं। मैंने आकर तुमसे कहा हे वरानने, मैं तुमसे प्रसन्न हूं, मागों तुम मुझसे वरदान में क्या मांगना चाहती हो। तब तुमने कहा कि हे देव, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो आप मेरे पति हों। – मैं ‘तथास्तु’ ऐसा कहकर कैलाश पर्वत को चला गया और तुमने प्रभात होते ही मेरी उस बालू की प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया।
हे शुभे, तुमने वहां अपनी सखी सहित व्रत का पारायण किया। इतने में तुम्हारे पिता हिमवान भी तुम्हें ढूंढते-ढूंढते उसी घने वन में आ पहुंचे। उस समय उन्होंने नदी के तट पर दो कन्याओं को देखा तो वे तुम्हारे पास आ गये और तुम्हें हृदय से लगाकर रोने लगे। और बोले-बेटी तुम इस सिंह व्याघ्नदि युक्त घने जंगल में क्यों चली आई?
तब तुमने कहा हे पिता, मैंने पहले ही अपना शरीर शंकर जी को समर्पित कर दिया था, लेकिन, आपने इसके विपरीत कार्य किया। इसलिए मैं वन में चली आई। ऐसा सुनकर हिमवान ने तुमसे कहा कि मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध यह कार्य नहीं करूंगा। तब वे तुम्हें लेकर घर और वापस लौट आए और तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया। हे प्रिये, उसी व्रत के प्रभाव से तुमको मेरा अर्द्धासन प्राप्त हुआ है। इस व्रतराज को मैंने भी अभी तक किसी के सम्मुख वर्णन नहीं किया है।
हे देवी! अब मैं तुम्हें यह बताता हूं कि इस व्रत का यह नाम क्यों पड़ा? तुमको सखी हरण करके ले गई थी, इसलिए हरतालिका नाम पड़ा। पार्वती जी बोलीं- हे स्वामी! आपने इस व्रतराज का नाम तो बता दिया लेकिन, मुझे इसकी विधि और फल भी बताइए कि इसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है। तब भगवान शंकर जी बोले-इस स्त्री जाति के अत्युत्तम व्रत की विधि सुनिये। सौभाग्य की इच्छा रखने वाली स्त्रियां इस व्रत को विधि पूर्वक करें।
केले के खम्भों से मण्डप बनाकर उसे वन्दनवारों से सुशोभित करें। उसमें विविध रंगों के उत्तम रेशमी वस्त्र की चांदनी ऊपर तान दें। चंदन आदि सुगन्धित द्रव्यों को लेपन करके स्त्रियां एकत्र हों। शंख, भेरी, मृदंग आदि बजायें। विधि पूर्वक मंगलाचार करके श्री गौरी शंकर की बालू निर्मित प्रतिमा स्थापित करें। फिर भगवान शिव पार्वती जी का गन्ध, धूप, पुष्प आदि से विधि पूर्वक पूजन करें।
अनेकों नैवेद्यों का भोग लगाएं और रात के समय जागरण करें। नारियल, सुपारी, जंवारी, नींबू, लौंग, अनार, नारंगी आदि ऋतु फलों तथा फूलों को एकत्रित करके धूप, दीप आदि से पूजन करके कहें-हे कल्याण स्वरूप शिव! हे मंगल रूप शिव ! हे मंगल रूप महेश्वरी! हे शिवे! सब कामनाओं को देने वाली देवी कल्याण रूप तुम्हें नमस्कार है। कल्याण स्वरुप माता पार्वती, हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। भगवान शंकर जी को सदैव नमस्कार करते हैं।
हे ब्रह्म रुपिणी जगत का पालन करने वाली “मां” आपको नमस्कार है। हे सिंहवाहिनी! मैं सांसारिक भय से व्याकुल हूं, तुम मेरी रक्षा करो। हे महेश्वरी ! मैंने इसी अभिलाषा से आपका पूजन किया है। हे पार्वती माता आप मेरे ऊपर प्रसन्न होकर मुझे सुख और सौभाग्य प्रदान कीजिए। इस प्रकार के शब्दों द्वारा उमा सहित शंकर जी का पूजन करें। विधिपूर्वक कथा सुनकर गौ, वस्त्र, आभूषण आदि ब्राह्मणों को दान करें। इस प्रकार से व्रत करने वाले के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
Hartalika Teej Vrat Katha | Full Video | In Hindi
हरतालिका तीज व्रत का आध्यात्मिक संदेश
हरतालिका तीज केवल एक पारंपरिक व्रत नहीं, बल्कि यह नारी शक्ति, संकल्प और समर्पण का प्रतीक है। माता पार्वती की भक्ति और तपस्या यह सिखाती है कि सच्चे प्रेम और विश्वास से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। यह व्रत स्त्रियों को न केवल वैवाहिक जीवन में स्थिरता और सौभाग्य की प्राप्ति कराता है, बल्कि आत्मबल, धैर्य और धार्मिक आस्था को भी सुदृढ़ करता है। हरतालिका तीज का पालन करके महिलाएं अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक समृद्धि के मार्ग को प्रशस्त कर सकती हैं।
Also Read:
- Hartalika Teej Aarti 2025: हरतालिका तीज आरती | सरल भाषा में संपूर्ण पाठ
- Hartalika Teej Vrat Kab Hai 2025? जानिए तिथि, मुहूर्त और व्रत से जुड़ी सभी जानकारी
- Hartalika Teej Vrat Katha 2025: जानिए व्रत की पूरी कथा, पूजन विधि और इसका धार्मिक महत्व
- Ekadashi Aarti : भगवान विष्णु की भक्तिमय स्तुति
- Ekadashi Vrat Vidhi : संपूर्ण पूजन और उपवास की सही प्रक्रिया
Hartalika Teej Vrat Katha Hartalika Teej Vrat Katha Hartalika Teej Vrat Katha Hartalika Teej Vrat Katha Hartalika Teej Vrat Katha Hartalika Teej Vrat Katha Hartalika Teej Vrat Katha Hartalika Teej Vrat Katha