
Ekadashi Vrat Katha सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र और फलदायी मानी जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और प्रत्येक पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को रखा जाता है। एकादशी व्रत न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्रदान करता है, बल्कि आत्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति का भी मार्ग है। इस व्रत में कथा श्रवण का विशेष महत्व होता है, जो भक्त को धर्म, संयम और भक्ति की प्रेरणा देता है। कथा के माध्यम से जीवन में शुभता और ईश्वर की कृपा बनी रहती है।
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Ekadashi Vrat Katha
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे। एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधवों सहित ललित भी गान कर रहा था।
गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अतः तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग। पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी।
उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी हो गई। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा। जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का पत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती।
एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे ! तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए।
श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का आप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए।
एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए। अतः इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से बाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है।
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Ekadashi Vrat Katha | Full Video in Hindi
एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें
एकादशी व्रत के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है, ताकि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। इस दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। दिनभर व्रत रखें, फलाहार या केवल जल ग्रहण करें (व्रती की क्षमता अनुसार)। विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद्गीता पाठ अथवा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
वहीं, इस दिन कुछ कार्य वर्जित माने गए हैं। तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज, मांस, मछली, शराब आदि का त्याग करें। क्रोध, विवाद, निंदा और असत्य वचन से बचें। एकादशी के दिन अन्न ग्रहण न करने की परंपरा है, क्योंकि शास्त्रों में इसे व्रत की मर्यादा के विपरीत बताया गया है। यदि संभव हो, तो रात्रि जागरण और प्रभु का भजन-कीर्तन करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। इस प्रकार, इन नियमों का पालन कर भक्तजन न केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं, बल्कि भगवान विष्णु की विशेष कृपा भी पाते हैं।
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