Vaibhav Lakshmi Vrat Katha 2025: सुख-समृद्धि दिलाने वाली व्रत कथा

Vaibhav Lakshmi Vrat Katha एक पवित्र और चमत्कारी कथा है जो मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए हर शुक्रवार को श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ी जाती है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और सौभाग्य का वास होता है। विशेष रूप से महिलाएं इस व्रत को मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत न केवल आर्थिक स्थिरता देता है, बल्कि पारिवारिक सुख-शांति भी बनाए रखता है। इस लेख में आप व्रत की विधि, नियम और संपूर्ण कथा विस्तार से जानेंगे।

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Vaibhav Lakshmi Vrat Katha | Full Katha in Hindi

किसी नगर में बहुत से लोग रहते थे, जो अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। किसी को किसी और की परवाह नहीं थी। भक्ति, भजन-कीर्तन, दया, माया और परोपकार जैसे गुण धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे थे। शहर में बुराइयों का बोलबाला था – शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी और डकैती जैसे पाप आम हो चुके थे।

फिर भी, कुछ अच्छे लोग अब भी उस शहर में रहते थे। ऐसे ही अच्छे लोगों में शीला और उसके पति की गृहस्थी को गिना जाता था। शीला धार्मिक और संतोषी स्वभाव की थी, जबकि उसका पति भी समझदार और सज्जन था। वे दोनों किसी की बुराई नहीं करते थे और अधिकतर समय प्रभु-भक्ति में लगाते थे। उनके सादगीभरे जीवन की सब लोग सराहना करते थे।

लेकिन समय के साथ हालात बदल गए। शीला के पति की संगति खराब हो गई। वह जल्दी अमीर बनने के सपने देखने लगा और गलत रास्तों पर चल पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि वह सब कुछ हार बैठा और कंगाल हो गया। उसे शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा जैसी बुरी लतें लग गईं और वह अपने दोस्तों के साथ समय बर्बाद करने लगा।

पति के इस व्यवहार से शीला को गहरा दुःख हुआ, लेकिन उसने भगवान पर विश्वास रखते हुए सब कुछ सह लिया। वह अधिकतर समय ईश्वर-भक्ति में बिताने लगी।

एक दिन दोपहर को किसी ने उनके दरवाज़े पर दस्तक दी। शीला ने दरवाज़ा खोला, तो एक तेजस्वी वृद्धा को सामने पाया। उनके चेहरे पर असीम शांति और आंखों से अमृत समान करुणा झलक रही थी। उन्हें देखकर शीला के मन में अजीब-सी शांति भर गई। उसने उन्हें आदरपूर्वक घर में बुलाया और एक फटी चादर पर बैठाया।

वृद्धा मुस्कराकर बोलीं, “क्या शीला, मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मी मंदिर में भजन-कीर्तन में मैं भी आती हूँ।” फिर बोलीं, “कई दिनों से तुम मंदिर नहीं आई, इसलिए तुम्हें देखने आ गई।”

उनकी मधुर वाणी सुनकर शीला की आँखें भर आईं और वह फूट-फूटकर रो पड़ी। मांजी ने प्रेमपूर्वक उसे ढाढस बंधाया और उसकी पूरी व्यथा पूछी।

शीला ने अपनी सारी कहानी सुना दी। मांजी ने कहा, “बेटी, जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। कर्मों का फल हर किसी को भुगतना पड़ता है। अब तेरा समय बदलने वाला है। तू मां लक्ष्मी का ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ कर। यह बहुत ही फलदायक और सरल व्रत है।”

उन्होंने व्रत की पूरी विधि बताई और कहा कि इससे सुख, समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है।

शीला को यह सुनकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। जब उसने आंखें खोलीं, तो देखा मांजी वहां नहीं थीं। शीला समझ गई कि यह कोई साधारण महिला नहीं, स्वयं मां लक्ष्मी थीं।

अगले ही दिन शुक्रवार था। शीला ने विधिपूर्वक स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूरी श्रद्धा से व्रत किया और प्रसाद बनाया। पहले उसी प्रसाद को उसने अपने पति को खिलाया। प्रसाद ग्रहण करते ही पति के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। उस दिन न तो उसने मारपीट की, न कोई ताना दिया। शीला को बड़ी शांति मिली और उसका विश्वास इस व्रत में और बढ़ गया।

शीला ने पूरे 21 शुक्रवार तक पूर्ण श्रद्धा से वैभव लक्ष्मी व्रत किया। 21वें शुक्रवार को उसने सात स्त्रियों को व्रत की पुस्तकें दीं और उद्यापन विधि से व्रत पूर्ण किया।

फिर लक्ष्मी माता की छवि के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की –
“हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपके वैभव लक्ष्मी व्रत को पूर्ण किया है। मेरी सारी परेशानियाँ दूर कीजिए, सबका कल्याण हो। जो संतानहीन हैं उन्हें संतान दीजिए, सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य सुरक्षित रहे, और कुंवारी कन्याओं को योग्य वर प्राप्त हो। जो भी भक्त यह व्रत करे, उनकी सभी विपत्तियाँ दूर हों और घर में सुख-शांति बनी रहे।”

इस व्रत के प्रभाव से शीला का पति सुधर गया, मेहनत करके व्यापार शुरू किया और शीला के गिरवी रखे गहने छुड़वा दिए। घर में फिर से समृद्धि लौट आई।

वैभव लक्ष्मी व्रत के इस अद्भुत प्रभाव को देखकर पड़ोस की अन्य स्त्रियाँ भी इस व्रत को श्रद्धा से करने लगीं।

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vaibhav lakshmi Katha | Full Video

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा के लाभ

वैभव लक्ष्मी व्रत करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए किया जाता है, जिससे घर में आर्थिक संकट दूर होते हैं और सौभाग्य की वृद्धि होती है। इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से परिवार में आपसी प्रेम बढ़ता है, रोग-शोक मिटते हैं और भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जो स्त्रियां इस व्रत को नियमित रूप से करती हैं, उन्हें अक्षय सौभाग्य और वैभव की प्राप्ति होती है।

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